अगर आप एक सेलर है या बायर है आप दोनों के लिए इस पोस्ट को मैं बना रहा हूं ताकि आप समझ सके की टीसीएस जो है वह Seller के लिए कैसे काम करता है और Buyer के लिए कैसे काम करता है, और आप दोनों लोग टीसीएस के फंडा को आसानी से कैसे समझ सकते हैं।
TDS (Tax Deducted at Source) की तरह ही, TCS (Tax Collected at Source) का भी एक नाम है, दोनों ही मामले में यह सरकार द्वारा टैक्स इकट्ठा करने का एक तरीका है।
लेकिन आज हम टीसीएस के बारे में बात करेंगे, क्योंकि यह टीसीएस टैक्स स्रोत पर ही जमा हो जाता है, लेकिन टीसीएस टीडीएस से थोड़ा अलग तरीके से काम करता है।
यह पोस्ट से टीसीएस के हर एक पहलू को सरल भाषा में समझेंगे, ताकि आप जान सकें कि टीसीएस क्या है, यह कब लगता है और इसका क्रेडिट कैसे मिलता है, सभी हम एक एक कर नीचे में बात करेंगे।
इस पोस्ट में क्या क्या है?
TCS क्या है? (What is TCS?)
TCS का मतलब है स्रोत पर एकत्र किया गया टैक्स, टीसीएस का नियम है कि जब कोई विक्रेता (seller) कुछ खास प्रकार के सामान या सेवाएं बेचता है, तो वह खरीदार (buyer) से पेमेंट लेते समय टैक्स की एक निश्चित राशि साथ में इकट्ठा करता है टीसीएस के नाम से।
सेलर द्वारा टैक्स के पैसा इकट्ठा की गई राशि को ही टीसीएस कहा जाता है, और यह टैक्स का पैसा विक्रेता को सरकार के पास जमा करना होता है उसी खरीदार के नाम से।
एक उदाहरण से समझे: जब आप ₹10 लाख से ज़्यादा कीमत की कोई कार खरीदते हैं, तो कार बेचने वाला डीलर आपको कार बेचते समय ही आपसे कुछ प्रतिशत टैक्स (TCS) के नाम से इकट्ठा करता है।
TCS को कौन जमा करता है? (Who Collects TCS?)
- टीसीएस विक्रेता (seller) द्वारा एकत्र किया जाता है।
- विक्रेता को खरीदार से टीसीएस को इकट्ठा करना होता है, और फिर उसे सरकार के खाते में जमा करना होता है।
- लिए हुए टीसीएस जमा करने की अंतिम तिथि अगले महीने की 7 तारीख होती है।
TCS के प्रकार और दरें (Types and Rates of TCS)
यह सबसे जरूरी जानकारी आपके लिए होगा, क्योंकि टीसीएस की दरें स्पष्ट रूप से अब में आपको बताऊंगा।
अलग अलग प्रकार के TCS:
बेचे गए माल पर TCS (TCS on Sale of Goods): जब कोई एक वित्तीय वर्ष में ₹50 लाख से ज़्यादा का सामान को बेचता है, तो अतिरिक्त राशि पर टीसीएस लगता है।
मोटर वाहन की बिक्री पर TCS: ₹10 लाख से ज़्यादा की कीमत वाली मोटर कार की बिक्री पर टीसीएस लगता हैं।
अन्य वस्तुओं पर TCS: जैसे तेंदू पत्ते (Tendu Leaves), स्क्रैप (Scrap), शराब (Alcoholic Liquor), टोल प्लाजा पार्किंग, आदि ऐसे चीज़ों की बिक्री पर टीसीएस लगता हैं।
विदेश धन भेजने पर TCS (LRS Scheme): इस स्कीम के अंदर ₹7 लाख से अधिक की राशि के ऊपर विदेश भेजने पर टीसीएस लगता हैं।
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TCS दरों की टेबल (Table of TCS Rates):
अब एक छोटा टेबल से समझे टीसीएस कितना प्रतिशत और किसे काटना है:
वस्तु/लेनदेन का प्रकार | टीसीएस की दर |
₹10 लाख से अधिक की मोटर कार की बिक्री पर | 1% का टीसीएस |
तेंदू पत्ते की बिक्री पर | 5% का टीसीएस |
स्क्रैप की बिक्री पर | 1% का टीसीएस |
माल की बिक्री (₹50 लाख से ज़्यादा) हो तो | 0.10% का टीसीएस (यदि पैन कार्ड दिया है तो) |
विदेश पैकेज या लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) के तहत विदेश धन भेजने के लिए | 5% से 20% का टीसीएस |
TCS का क्रेडिट कैसे मिलता है? (How to Get Credit for TCS?)
जब कोई विक्रेता सरकार के पास टीसीएस जमा करता है, तो यह जानकारी खरीदार के पैन नंबर के साथ आयकर विभाग को दी जाती है।
और यह टीसीएस राशि खरीदार के Form 26AS और AIS (Annual Information Statement) में दिखाई देंगे, इससे यह पता चलेगा की सच में टीसीएस का पैसा जमा हुआ है।
खरीदार अपना ITR फाइल करते समय, इस जमा किया टीसीएस राशि को अपनी अंतिम टैक्स देनदारी (tax liability) से घटाकर इसका क्रेडिट क्लेम कर सकता है।
एक उदाहरण से समझे: यदि आपका ₹20,000 का टीसीएस जमा हुआ है, और आपकी सालाना कुल टैक्स देनदारी ₹40,000 का है, तो आपको उस ₹20,000 हजार को कम कर केवल ₹20,000 का टैक्स देना होगा।
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TCS क्यों लाया गया?
आपको यह जानना बहुत ही जरूरी है कि टीसीएस क्यों लाया गया ताकि आप इस टैक्स के बारे में और अच्छे से समझ सके, देखिए टीसीएस आपका डायरेक्ट टैक्स है, और यह आपका पूरा टैक्स नहीं है यह टीसीएस सिर्फ आपका एडवांस टैक्स है।
टीसीएस सरकार यह पता लगाने के लिए लाया है ताकि ज्यादा लेनदेन को ट्रैक कर सके और ज्यादा से ज्यादा लोगों को टैक्स के अंदर ला सके, इससे टैक्स के चोरी नहीं होती है और सरकार को पूरे साल भर टैक्स का पैसा मिलता है।
एक उदाहरण से समझे: अब मान लीजिए कोई टैक्स नहीं भरता है, और 50 लाख से ऊपर किसी चीज का खरीद करता है और सामान को बेचने वाला आपसे टीसीएस काटा है, तो जब यह पैसा सरकारी के पास जमा करेगी आपका नाम से।
अब आप अपना इस दिए हुए एडवांस टैक्स का पैसा वापस लेने के लिए अपना इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फाइल करेंगे, और इनकम टैक्स क्रेडिट (ITC) क्लेम करेंगे, तो सरकार को आपके आईटीआर के मदद से आपके बाकी इनकम का भी पता चलता है और आगे से आप टैक्स पे करते हैं।
TDS और TCS में क्या अंतर है?
यह तो आपने जाना टीसीएस क्या है? अब में आपको छोटा सा टेबल से टीडीएस और टीसीएस के बीच में अंतर को समझा देता हूं:
TDS (Tax Deducted at Source) | TCS (Tax Collected at Source) |
TDS आय (Income) पर कटता है (जैसे सैलरी, प्रोफेशनल फीस)। | TCS बिक्री (Sale) पर इकट्ठा होता है। |
TDS काटने की ज़िम्मेदारी भुगतान करने वाले (Payer) की होती है। | TCS इकट्ठा करने की ज़िम्मेदारी भुगतान लेने वाले (Seller) की होती है। |
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निष्कर्ष (Conclusion) टीसीएस के बारे में
टीसीएस भी एक महत्वपूर्ण टैक्स प्रणाली है जिसे विक्रेता और खरीदार दोनों को समझना बहुत ही ज़रूरी है, और इससे सरकार के पास पैसा टैक्स के रूप में पहले ही जमा हो जाता है।
- Seller के लिए: विक्रेता को सही दर पर अपने ग्राहक से टीसीएस इकट्ठा करना और जमा करना होता है सरकार के पास।
- Buyer के लिए: खरीदार को भी अपने काटे गए टीसीएस का क्रेडिट को आईटीआर जमा करने के समय में क्लेम करना होता है।
ऐसे टीसीएस और टैक्स की सही जानकारी रखकर आप कानूनी जुर्माने से बच सकते हैं और अपनी आईटीआर फाइलिंग को आसान बना सकते हैं, और आगे किसी भी दिक्कत से अपने आप को सुरक्षित रखते हैं।
में उम्मीद करता हू कि TCS क्या होता है? और टीसीएस क्यों काटा जाता है? ऐसे सवाल के बारे में आपने समझ लिया है, अपने दोस्त और सोशल मीडिया पर इस पोस्ट को शेयर कर उनको भी जानकारी लेने का मौका दे।
अब इस पोस्ट से जाने:- TDS Return और Income Tax Return में क्या अंतर है? जानिए पूरी जानकारी