मेरा यह पोस्ट कंपोजिशन स्कीम क्या है? छोटे व्यापारी, सेवा प्रदाता, रेस्टोरेंट के मालिक, और कोई भी नया व्यवसायी जो जीएसटी के काम को आसान बनाना और जानना चाहता है उनके के लिए बहुत मददगार होगी।
साथ में आप जानेंगे कंपोजिशन स्कीम किसके लिए है, इसके फायदे और नुकसान क्या हैं, और कंपोजिशन स्कीम को कौन चुन सकता हैं और कौन नहीं चुन सकता, इसलिए आप इस पोस्ट को पूरा पढ़ें।
सरल शब्दों में बताऊं तो कंपोजिशन स्कीम लेने वाले की सामान्य जीएसटी डीलर से नियम अलग होती है जैसे टैक्स का दर कम और आसान रिटर्न की तरीका होना, यह सब हम विस्तार से नीचे बात करेंगे।
इस पोस्ट में क्या क्या है?
कंपोजिशन स्कीम क्या है? (GST का आसान रास्ता)
कंपोजिशन स्कीम GST (वस्तु एवं सेवा कर) के अंदर छोटे व्यवसा करने वालों के लिए बनाई गई एक सरल योजना है, इस स्कीम बनाने का असली कारण छोटे व्यापारियों और सेवा प्रदाताओं पर जीएसटी के नियमों का पालन करने का बोझ कम करना है।
सभी जीएसटी में रजिस्टर्ड व्यवसायों को हर महीने या तिमाही में अपने सेल की रिटर्न करना होता है जैसे GSTR-1, GSTR-3B के जरिए भरने होते हैं, यह जीएसटी रिटर्न अपने ग्राहक से जीएसटी इकट्ठा करके सरकार के पास जमा करना होता है।
लेकिन कंपोजिशन स्कीम में यह थोड़ा अलग है यह स्कीम चुनने वाले व्यवसायों को ऐसा नहीं करना पड़ता, उन्हें अपने कुल टर्नओवर का एक बहुत छोटा और फिक्स हिस्सा जीएसटी के रूप में सरकार को चुकाना होता है, यह एक मुफ्त भुगतान की तरह होता है।
यह कंपोजिशन स्कीम उन लोगों के लिए बहुत ही अच्छा है जो कम टर्नओवर रखते हैं और सरल नियम चाहते हैं, लेकिन यह स्कीम सबके लिए नहीं है यह भी आपको जानना जरूरी है, जो हम आगे बात करेंगे।
कंपोजिशन स्कीम कौन चुन सकता है? (योग्यता की शर्त)
जीएसटी के अंदर हर कोई कंपोजिशन स्कीम नहीं चुन सकता, इस स्कीम में आने के लिए कुछ खास शर्तें बनाए गए हैं।
पहले आप टर्नओवर की सीमा को समझे:
सामान बेचने वाले व्यापारी और निर्माता के लिए: उनका सालाना टर्नओवर मतलब कुल बिक्री ₹1.5 करोड़ से ज़्यादा नहीं होना चाहिए।
सेवा प्रदाता (Service Providers) और कुछ खास व्यापारी के लिए: उनके लिए भी उनका सालाना टर्नओवर ₹50 लाख से ज़्यादा नहीं होना चाहिए।
कुछ विशेष राज्यों के लिए नियम: कुछ खास राज्यों जैसे पूर्वोत्तर के राज्य और हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, आदि उनके लिए सामान बेचने वालों की यह सीमा कम ₹75 लाख हो सकती है, यह सीमा आपको अपने राज्य के हिसाब से सटीक सीमा को चेक करना चाहिए।
कुछ अन्य ज़रूरी शर्तें है यह भी जाने:
इस जीएसटी कंपोजिशन स्कीम के अंदर आप सिर्फ अपने राज्य के अंदर ही सामान या सेवाएँ बेचते हों ऐसा होना चाहिए मतलब अंतर राज्यीय बिक्री नहीं होना चाहिए जैसे एक राज्य से दूसरे राज्य पर।
साथ में आप किसी ई-कॉमर्स ऑपरेटर जैसे Amazon, Flipkart, Meesho के माध्यम से सामान नहीं बेचते हों, अगर आप इनसे अपना सामान को बेचते है तो आप जीएसटी के दायरे में आते है।
आप कुछ खास उत्पादों में आप इस स्कीम के अंदर नहीं आ सकते जैसे पान मसाला, तंबाकू उत्पाद, आइसक्रीम, एरेटेड ड्रिंक्स को नहीं बनाते या व्यापार नहीं करते हों।
आप अनिवासी कर योग्य व्यक्ति (Non-Resident Taxable Person) मतलब भारत के रहने वाले अब 182 दिनों के ऊपर विदेश पर रहते हो, या आकस्मिक कर योग्य व्यक्ति (Casual Taxable Person) मतलब कभी कभी दूसरे राज्य में अपने वस्तुओं या सेवाओं की सप्लाई करता है, ऐसा नहीं होना चाहिए।
इसके अंदर आप इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का दावा नहीं करते हों ऐसा होना चाहिए, यह कुछ ऐसे शर्त है जो आपके लिस्ट में नहीं होना चाहिए तो आप कंपोजिशन स्कीम के अंदर आ सकते है।
इस पोस्ट को भी पढ़ें:- TDS और GST दोनों कैसे संभालें? (फ्रीलांसर के लिए गाइड)
कंपोजिशन स्कीम के फायदे (क्यों चुनें यह विकल्प?)
अगर आप जीएसटी के कंपोजिशन स्कीम को चुनते है तो इसके कई बड़े फायदे हैं, खासकर छोटे व्यवसायों करने वालों लोगों के लिए, अब में आपको वह समझाऊंगा।
नियम बहुत आसान आसान है (Easy Compliance): आसान नियम यह सबसे बड़ा फायदा है और आपको हर महीने GSTR-1 रिटर्न भरने के बजाय, सिर्फ एक तिमाही रिटर्न मतलब तीन मंथ में एकबार (GSTR-4) भरना होता था।
CMP-08 के साथ संबंध: लेकिन अब हर तिमाही (quarter) में आपको फॉर्म CMP-08 भरना होता है, जिसमें आप अपने कुल टर्नओवर और टैक्स की जानकारी देते हैं, पहले GSTR-4 में यही सारी जानकारी एक साथ दी जाती है।
और जो सालाना एक समरी रिटर्न GSTR-9A को भरने की जरूरत होती है लेकिन अब GSTR-4 से सालाना और तिमाही का काम कर देती है, इससे कागज़ों का काम बहुत कम हो जाता है।
और कम टैक्स दरें: सामान्य जीएसटी रजिस्टर्ड डीलरों की तुलना में आपको कंपोजिशन स्कीम में बहुत कम दर पर जीएसटी देना होता है।
- सामान बेचने वाले व्यापारी और सामान बनाने वालों को 1% अपने कुल टर्नओवर का जीएसटी देना होता है।
- रेस्टोरेंट जहां पर जो शराब नहीं बेचा जाता उनको सिर्फ 5% अपने कुल टर्नओवर का जीएसटी देना होता है।
- सेवा प्रदाता के लिए यह 6% है वह भी अपने कुल टर्नओवर का 6% जीएसटी देना होता है।
इनसे कम टैक्स का बोझ होता हैं: कुल मिलाकर ऊपर जो आपने पढ़ा है इससे आपको सरकार को कम टैक्स देना पड़ता है।
सरल बिलिंग: कंपोजिशन स्कीम में आपको अपने ग्राहकों को “टैक्स इनवॉइस” मतलब जीएसटी वाला बिल देने की ज़रूरत नहीं पड़ती, आपको केवल एक “बिल ऑफ सप्लाई” जारी करना होता हैं, जो सिर्फ एक डॉक्यूमेंट है जिसमें पता चलता है कि आप जीएसटी के अंदर है लेकिन यह थोड़ा अलग है।
सारांश में कहूं तो कंपोजिशन स्कीम छोटे व्यवसायों के लिए एक बड़ा वरदान है, इसका सबसे बड़ा फायदा आसान नियम का पालन, कम दस्तावेज़ को मैनेज करना पड़ता है और कम रिटर्न देना पड़ता है।
कंपोजिशन स्कीम के नुकसान (क्या चुनौतियाँ हैं?)
हर चीज का फायदे के साथ साथ नुकसान भी होते है ऐसे जीएसटी में कंपोजिशन स्कीम की कुछ सीमाएँ और नुकसान भी हैं जिनको आपको जानना बहुत ज़रूरी है।
इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) नहीं मिलेगा: यह सबसे बड़ा नुकसान है कंपोजिशन स्कीम का, मतलब आपने जो सामान या सेवाएँ खरीदते हैं और उन पर जो जीएसटी चुकाते है, उन पैसे का आप ITC (इनपुट टैक्स क्रेडिट) क्लेम नहीं कर सकते, इससे आपकी व्यवसाय की लागत थोड़ी सी बढ़ सकती है।
ग्राहक से GST इकट्ठा नहीं कर सकते: जो भी आप सामान या सेवाएं देते है उनपर आप अपने ग्राहकों से जीएसटी अलग से नहीं वसूल सकते, क्योंकि आप बिल ऑफ सप्लाई जारी करते हैं टैक्स इनवॉइस नहीं, इससे इन टैक्स को आप अपने जेब से भरना पड़ता है।
अपने जेब से जीएसटी भरना न पड़ें इसके लिए आप ऐसे कर सकते है कि आप उस टैक्स के अमाउंट को अपनी सामान के बिक्री कीमत में शामिल कर सकते हैं, इससे आपके जीएसटी थोड़ा कम हो जाएगा।
अंतर-राज्यीय बिक्री पर प्रतिबंध: आप किसी भी सामान या सेवाएँ जो आप देते है वह अपने राज्य के बाहर किसी भी राज्य में नहीं दे सकते या नहीं बेच सकते, इससे आपके बिज़नेस का विकाश नहीं होता है एक ही राज्य के अंदर सीमित हो जाता है।
ई-कॉमर्स के माध्यम से बिक्री नहीं: आप Amazon, Flipkart, Meesho जैसी बड़ी बड़ी ऑनलाइन मार्केटप्लेस के ज़रिए अपना सामान नहीं बेच सकते, मतलब आप ऑनलाइन सेलर नहीं बन सकते।
नॉन-टैक्सेबल सप्लाई भी टर्नओवर में शामिल: भले ही कुछ वस्तुएँ जीएसटी के दायरे में न आती हों जैसे शराब, उनकी बिक्री को भी आपकी कुल टर्नओवर की सीमा में गिनी जाती है, जो आपको कंपोजिशन स्कीम के दायरे से बाहर कर सकती है।
इस पोस्ट को भी पढ़ें:- GSTIN क्या है? जानें क्यों ज़रूरी है यह 15 अंकों का नंबर और इसके हर अंक का मतलब
कंपोजिशन स्कीम कैसे चुनें या उससे बाहर कैसे निकलें?
अब जब आप कंपोजिशन स्कीम क्या है? यह समझ गए और कंपोजिशन स्कीम के फायदे और नुकसान भी समझ गए है, तो अब अगर आप कंपोजिशन स्कीम चुनना चाहते है तो कैसे चुन सकते है अब आप वह जाने।
अगर आप अपना नया जीएसटी रजिस्ट्रेशन करा रहे हैं तो रजिस्ट्रेशन के समय ही आप कंपोजिशन स्कीम का ऑप्शन चुन सकते हैं, और आप कंपोजिशन स्कीम के अंदर आ जाएंगे।
अगर आप पहले से ही सामान्य जीएसटी रजिस्टर्ड डीलर हैं मतलब आप सबके तरह जीएसटी नियम को पालन कर रहे हैं और अब कंपोजिशन स्कीम में स्विच करना चाहते हैं, तो आपको नए वित्तीय वर्ष की शुरु से पहले मतलब 31 मार्च के पहले जीएसटी पोर्टल पर Form CMP-02 फाइल करके यह कंपोजिशन स्कीम को चुने।
ऐसे कोई कारण है जिससे आप जीएसटी के कंपोजिशन स्कीम से बाहर निकलना चाहते है तो यह चुनने की भी प्रक्रिया आपको पता होना चाहिए (Opt-Out / Withdrawal)।
अगर आपका सालाना टर्नओवर कंपोजिशन स्कीम की तय सीमा समान के लिए ₹1.5 करोड़ या सेवा के लिए ₹50 लाख से ज़्यादा हो जाता है, तो आपको तुरंत इस स्कीम से बाहर निकलना होगा।
और आप अगर स्कीम की किसी भी शर्त का उल्लंघन करते हैं जैसे अपने राज्य से दूसरे राज्य में बिक्री शुरू कर देते हैं, तो भी आपको बाहर निकलना होगा।
इन सब कारणों में आप अपने इच्छा से इस स्कीम से बाहर निकल सकते हैं, और अगर आपका टर्नओवर ज्यादा या दूसरे राज्य पर बेच रहे हैं तो आप जल्दी इससे बाहर हो जाए यही आपके लिए अच्छा होगा, नहीं तो शायद आपको जीएसटी कानून के उल्लंघन पर जुर्माना लग सकता है।
पहले ही आप कंपोजिशन स्स्कीम के अंदर है अब इससे बाहर निकलने के लिए आपको जीएसटी पोर्टल पर Form CMP-04 फाइल करना होता है, और आप बाहर निकल जाएंगे।
इस स्कीम से बाहर निकलने के बाद आपको सामान्य जीएसटी नियमों का पालन करना होगा जो सब कर रहे है, और आपको अपने स्टॉक में बचे इनपुट पर ITC का लाभ मिल सकता है।
इस पोस्ट को भी पढ़ें:- भारत में क्रिप्टोकरेंसी पर टैक्स कैसे लगता है? जानें VDA के नियम, TDS, ITR और टैक्स बचाने के तरीके (पूरी गाइड)
निष्कर्ष: क्या कंपोजिशन स्कीम आपके लिए है?
कंपोजिशन स्कीम छोटे व्यवसा करने वाले लोगों के लिए जीएसटी नियम को बहुत आसान बनाने वाला एक बेहतरीन तरीका है, यह उन लोगों के लिए बहुत फायदेमंद है जो अपना बिज़नेस को सिर्फ एक राज्य के भीतर करना चाहते हैं और जिनके लिए ITC (इनपुट टैक्स क्रेडिट) का दावा करना उतना जरूरी नहीं है।
लेकिन इसके बड़े नुकसान जैसे आईटीसी ना मिलना, अंतर-राज्यीय बिक्री और ई-कॉमर्स बिक्री पर रोक लगा देता है इन सब को समझना आपके लिए ज़रूरी है।
इसके बाद आपको अपने बिज़नेस की तरीका, आपका सालाना टर्नओवर, आप कहाँ बेचना चाहते हैं अपने राज्य के अंदर या दूसरे राज्य में, या ऑनलाइन सेल करना चाहते है और आपकी खर्चा में से आईटीसी का कितना बड़ा हिस्सा हो सकता है, इन सभी बातों पर विचार कर अपना फैसला लेना चाहिए।
हमेशा याद रखें कि टैक्स नियम पर हर साल कुछ ना कुछ बदलाव होते रहते हैं, इसीलिए हमेशा नवीनतम नियम की ओर ध्यान रखें, और आपको अगर टैक्स के विषय पर कोई भी परेशानी हो तो हमेशा एक अच्छे टैक्स सलाहकार (CA) से संपर्क करें, वह आपको सही सलाह देंगे।
कोई भी फैसला लेने से पहले अपनी अभी के समय के लिए यह स्कीम फायदेमंद होगा या नहीं और आपका भविष्य की योजना या टर्नओवर क्या होगी इस पर ध्यान दे, ज़रूरत पड़ने पर किसी टैक्स सलाहकार से सलाह ज़रूर लें, वह आपको स्थिति के हिसाब से सही मार्गदर्शन दे पाएंगे।
में उम्मीद करता हू कि आपको कंपोजिशन स्कीम क्या है? और इसके फायदे, नुकसान और योग्यता के बारे मैं आपको जानकारी मिली है, अपने दोस्त और सोशल मीडिया पर इस पोस्ट को शेयर कर उनको भी जानकारी लेने का मौका दे।
अब इस पोस्ट को भी पढ़ें:- GST क्या है? जानें वस्तु एवं सेवा कर के 4 प्रकार (CGST, SGST, IGST, UTGST) और उनका मतलब