TDS और ITC में क्या अंतर है? दोनों के बारे में जान लीजिए

TDS (Tax Deducted at Source) और ITC (Input Tax Credit) दोनों ही भारत के टैक्स सिस्टम में इस्तेमाल होने वाले दूं शब्द हैं, और दोनों का काम (टैक्स क्रेडिट) से है, लेकिन इनका उद्देश्य, कानून, नियम और दावा करने की तरीका पूरी तरह से अलग है।

अगर आप एक फ्रीलांसर, सप्लायर या बिज़नेसमैन हैं, तो TDS और ITC  इन दोनों के बीच का अंतर समझना आपके लिए बहुत ज़रूरी है, हम आज इस पोस्ट से आपको इनके बारे में अच्छे से समझाएंगे इसलिए आप इस पोस्ट को लास्ट तक पड़े।

TDS (Tax Deducted at Source) इनकम टैक्स से जुड़ा

देखिए टीडीएस का संपर्क सीधे इनकम टैक्स (Income Tax) से जुड़ा हुआ है, इसका काम है (स्रोत पर टैक्स कटौती) मतलब पैसा देने के जगह से ही टैक्स इकट्ठा करना।

टीडीएस से सरकार उद्देश्य है टैक्स से, किसीका इनकम का पैसा अकाउंट में आने से पहले ही काट लेना और उसे जमा करना, यह सब काम कंपनी या संस्था करती है जो बड़े बड़े अमाउंट पे करते है।

टीडीएस कैसे काम करता है: जब आपको किसी सेवा या कॉन्ट्रैक्ट काम के लिए पैसा मिलता है, तो पेमेंट करने वाला व्यक्ति (Deductor) आपकी इनकम का एक हिस्सा टैक्स के रूप में काट लेता है और उसे सरकार के पास जमा कर देता है।

क्रेडिट का दावा: आप इस काटे गए टीडीएस का दावा इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फाइल करते समय ले सकते हैं, यह टीडीएस से कटा गया पैसा आपके कुल टैक्स में से कम हो जाएगा।

प्रमाण पत्र: फॉर्म 16 (सैलरी के लिए) इस्तेमाल होता है और फॉर्म 16A (अन्य इनकम के लिए) इस्तेमाल होता है, यह आपका टीडीएस सर्टिफिकेट होता है।

एक उदाहरण से समझे: किसी फ्रीलांसर को अपने काम के लिए ₹60,000 की फीस मिलना है, लेकिन ₹6,000 टीडीएस कट गया, और फ्रीलांसर को ₹54,000 मिले, और वह ₹6,000 का क्रेडिट आईटीआर फाइल करते समय क्लेम किया।

इस पोस्ट से पूरा जान सकते है:- TDS क्या है? जानें क्यों कटता है आपका पैसा और कैसे पाएं रिफंड, फॉर्म 26AS

ITC (Input Tax Credit) जीएसटी से जुड़ा

आईटीसी का संपर्क सीधे तौर पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से जुड़ा हुआ है, इसका काम है सामान लेने पर दिए गए टैक्स का क्रेडिट लेना।

आईटीसी का उद्देश्य है कैस्केडिंग इफ़ेक्ट को खत्म करना मतलब (Tax on Tax) से लोग बच सके और पूरे सप्लाई चेन पर केवल एक बार टैक्स लगे।

आईटीसी कैसे काम करता है: जब आप कोई सामान या सेवा खरीदते हैं, तो आप उसके साथ जीएसटी भी देते हैं, लेकिन जब आप वही सामान आगे बेचते हैं, तो आप उस बेचे गए सामान पर लगे जीएसटी में से अपनी खरीद पर दिए गए पहले जीएसटी को कम कर सकते हैं।

क्रेडिट का दावा: आप इस आईटीसी का दावा जीएसटी रिटर्न (GSTR-3B) फाइल करते समय कर सकते हैं।

इसका प्रमाण: किसी सामान परचेज़ करने के समय जो इनवॉइस (Purchase Invoice) मिलता है और वह आपके GSTR-2B में दिखाई देता है, GSTR-2B में दिखाई गए पैसे का आप आईटीसी ले सकते है।

एक उदाहरण से समझे: मान लीजिए आपने ₹2,000 की खरीद की और ₹360 जीएसटी दिया, जब आपने उसी प्रोडक्ट को ₹2,500 में बेचा और ₹450 जीएसटी ग्राहक से लिया, तो आपको केवल (₹450 – ₹360 = ₹90) सिर्फ जीएसटी सरकार को देना होगा।

इस पोस्ट से जाने:- ITC का दावा क्या है और इसे कैसे करें? जानें इनपुट टैक्स क्रेडिट के नियम और GSTR-2B का महत्व

TDS और ITC में मुख्य अंतर (एक टेबल)

आधारTDS (Tax Deducted at Source)ITC (Input Tax Credit)
संबंधप्रत्यक्ष कर (Direct Tax) अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax)
किसके अंदर?इनकम टैक्सजीएसटी
क्या है?इनकम से काटा गया एडवांस टैक्सखरीद पर दिया गया टैक्स
उद्देश्यसरकार के लिए टैक्स कलेक्शन आसान बनानाटैक्स पर टैक्स (Cascading Effect) को पूरा खत्म करना
कहाँ क्लेम करें?इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) मेंजीएसटी रिटर्न (GSTR-3B) में
प्रमाणफॉर्म 16 या 16Aपरचेज़ इनवॉइस (GSTR-2B) मे

आईटीसी (Input Tax Credit) का दावा यह दावा आप जीएसटी रिटर्न (GSTR-3B) फाइल करते समय कर सकते है, और आईटीआर फाइल करते समय टीडीएस का क्लेम किया जाता हैं।

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निष्कर्ष: टीडीएस और आईटीसी के बारे में

अंत में टीडीएस आपकी इनकम का वह हिस्सा है जो एडवांस में कट जाता है, लेकिन आईटीसी आपकी खरीद पर दिया गया वह टैक्स है जिसे आप अपनी बिक्री के समय टैक्स से घटा सकते हैं। 

TDS और ITC दोनों ही टैक्स क्रेडिट हैं, लेकिन दोनों का इस्तेमाल और कानून पूरी तरह से अलग काम करता है जो हमने आपको ऊपर बताया हैं।

ज्यादा तर समय पर टीडीएस और आईटीसी के बीच का अंतर भ्रम पैदा करता है, क्योंकि दोनों ही (क्रेडिट) का संपर्क में हैं, में उम्मीद करता हु कि आपके यह भ्रम खत्म हो गया, अपने दोस्त और सोशल मीडिया पर इस पोस्ट को शेयर कर उनको भी जानकारी लेने का मौका दे।

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